इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन (आईएलओ) की मंगलवार को आई रिपोर्ट में यह कहा गया है कि कोरोनावायरस संकट भारत के असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे 40 करोड़ श्रमिकों को गरीबी में धकेल सकता है। क्योंकि वायरस से निपटने के लिए लॉकडाउन के अलावा कई तरह के ऐसे कदम उठाए गए, जिसका असर नौकरियों और कमाई पर पड़ा है। आईएलओ के मुताबिक, भारत उन देशों में शामिल है, जो इस तरह के हालात से निपटने के लिए बेहतर ढंग से तैयार नहीं है।
जिनेवा में जारी हुई आईएलओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना की रोकथाम के लिए लॉकडाउन और दूसरे उपायों की वजह से भारत, नाइजीरिया और ब्राजील की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम कर रहे मजदूर ज्यादा प्रभावित हैं। भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में 90 फीसदी मजदूर काम करते हैं, जिन पर रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के इंडेक्स में भी भारत के लॉकडाउन को सबसे ऊपर रखा गया है। इसने शहरों में काम करने वाले मजदूरों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया और उन्हें गांव वापस लौटने पर मजबूर किया। इतना ही नहीं, रिपोर्ट में कहा गया है कि जो देश पहले से ही प्राकृतिक आपदाओं, लंबी लड़ाई और विस्थापन का सामना कर रहे हैं। उनपर महामारी का बोझ कई गुना बढ़ जाएगा। ऐसा इसलिए भी होगा, क्योंकि यहां लोगों के पास स्वास्थ्य और सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। यहां श्रमिकों के लिए वर्कप्लेस पर बहुत अच्छे हालात नहीं है, न ही सामाजिक सुरक्षा पर जोर है।
कोविड-19 महामारी का काम के घंटे पर भी असर पड़ेगा
आईएलओ ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया है कि इस महामारी का वैश्विक स्तर पर काम के घंटे और कमाई पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। इसकी वजह से 2020 की दूसरी तिमाही में काम के कुल घंटों में करीब 6.7 फीसदी की कमी आ सकती है। जो 19.5 करोड़ मजदूरों के काम के बराबर है। इसका सबसे ज्यादा असर अरब देशों में पड़ता दिख रहा है। यहां काम के घंटों में 8.1 फीसदी की कमी हो सकती है, जो 50 लाख स्थायी वर्करों के काम के बराबर है। यूरोप में यह आंकड़ा 7.8 फीसदी रह सकता है, जो करीब 1 करोड़ 20 लाख फुल टाइम वर्करों के काम के बराबर है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में 12.5 करोड़ श्रमिक इससे प्रभावित रह सकते हैं।
कमाई पर भी पड़ेगा असर
इस महामारी की वजह से अलग-अलग आय समूहों में भारी नुकसान की आशंका है। खासतौर पर अपर-मिडिल इनकम वाले देशों में लोगों की कमाई में करीब 7 फीसदी की कमी हो सकती है। यह 2008-09 की आर्थिक मंदी से भी ज्यादा होगी। जिन सेक्टर्स पर इसका ज्यादा असर होगा। इसमें हाउसिंग, फूड सर्विस, मैन्यूफैक्चरिंग, रिटेल और बिजनेस शामिल हैं। इसकी वजह से 2020 में बेरोजगारी भी बढ़ेगी। आईएलओ के मुताबिक, यह आंकड़ा उसके 2.5 करोड़ के शुरुआती अनुमान से ज्यादा होगा। 3.3 बिलियन के ग्लोबल वर्कफोर्स में भी पांच में से चार लोग (81 प्रतिशत) वर्तमान में कार्यस्थल के पूरी तरह या आंशिक रूप से बंद होने से प्रभावित हैं।